मैं जब भी पुकारू माँ, तुम दौड़ी चली आना

मैं जब भी पुकारू माँ, तुम दौड़ी चली आना,
इकपल भी ना रुकना माँ, मेरा मान बड़ा जाना….

नवरात्रों में मैया, तेरी ज्योत जलाउंगी,
जब ज्योत जले मैया, आके दरश दिखा जाना,
मैं जब भी पुकारू माँ…..

सावन के महीने में, तेरा झुला डालुंगी,
जब झुला डलेगा माँ, जरा झूलन आ जाना,
मैं जब भी पुकारू माँ…….

फागुन के महीने में, तेरा कलश भराउंगी,
जब रंग धुलेगा माँ, तुम खेलन आ जाना,
मैं जब भी पुकारू माँ…..

बीच भवर में माँ, मेरी नैया डोल रही,
तुम नैया को आकर माँ, जरा पार लगा जाना,
मैं जब भी पुकारू माँ……

Leave a Comment

You cannot copy content of this page